नेहरू बाल पुस्तकालय >> बन बन गैंडे की कहानी बन बन गैंडे की कहानीशक्तिरूपा
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‘‘बाढ़ में गैंडे का एक बच्चा बहकर आया है।’’ लाटूमणि ने जब यह बात सुनी, वह बेचैन हो उठा।...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बन बन गैंडे की कहानी
‘‘बाढ़ में गैंडे का एक बच्चा बहकर आया
है।’’ लाटूमणि ने जब यह बात सुनी, वह बेचैन हो उठा।
काजीरंगा जंगल के पास ही एक गांव था। गांव का नाम बनगांव था। यहीं लाटूमणि रहता था। लाटूमणि अपने मां-बाप की आंखों का तारा था। आयु दस साल थी। भले ही वह अभी छोटा था, पर जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, चिड़ियों के नाम खूब जानता था। उसके दादाजी जंगल में ले जाकर उसे बताते-सिखाते थे।
सप्ताह भर से मूसलाधार बारिश हो रही थी। उनके घर के चारों तरफ पानी ही पानी था। लाटूमणि को तैरना तो आता था, पर उसके दादाजी ने उसके घऱ से निकलने पर जैसे पाबंदी लगा रखी थी क्योंकि पानी में सांप और दूसरे जीवं-जंतुओं का डर लगा रहता है। कहीं पोते को कोई चीज काट न ले।
लाटूमणि के पिता ने केले के तनों से डोगी बना रखी थी। लाटूमणि का जी चाहता कि डोंगी में एक बार वह भी सवारी करे। बाढ़ आने के कारण हिरन, गैंडे जंगल के दूसरे जीव-जंतु जहां-तहां भटक रहे थे।
आज सवेरे-सवेरे ही कनक ने आकर लाटूमणि को बताया कि बाढ़ में एक गैंडे का बच्चा बहकर आया है। लाटूमणि ने जब से यह बात सुनी, वह बहुत बेचैन था—काश ! वह उसे एक बार जाकर देख पाता ! सोचते-सोचते एक तरीका निकल आया। चुपके से डोंगी लेकर गैंडे तक जाने का उसने मन ही मन फैसला किया।
लाटूमणि ने रसोई की तरफ देखा। मां भात पका रही थी एक झटके में वह घर के पिछवाड़े चला आया। देखा, डोंगी खूंटे से बंधी थी। खूंटे से खोलकर वह डोंगी पर सवार हो गया। फिर जोर से पकड़कर वह डोंगी पर लेट गया। हिलती-डुलती डोंगी आगे बढ़ने लगी। डोंगी चली तो लाटूमणि का दिल धड़कने लगा—कहीं वह डूब न जाये ! फिर उसने अपना मन मजबूत किया—डरने से काम नहीं चलेगा। मुसीबत में धीरज रखना चाहिए।
तभी दादाजी की कही बातें उसे बरबस याद हो आयीं। वह उत्साह से भर उठा। डोंगी पर तनकर बैठ गया और लाठी से डोंगी को खेते हुए आगे बढ़ने लगा। अभी कुछ ही आगे बढ़ा था कि देखा, कोई चीज पानी में ऊपर-नीचे हो रही है।‘‘अरे,. यह तो गैंडे का बच्चा है !’’ लाटूमणि मन ही मन सोचने लगा।
काजीरंगा जंगल के पास ही एक गांव था। गांव का नाम बनगांव था। यहीं लाटूमणि रहता था। लाटूमणि अपने मां-बाप की आंखों का तारा था। आयु दस साल थी। भले ही वह अभी छोटा था, पर जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, चिड़ियों के नाम खूब जानता था। उसके दादाजी जंगल में ले जाकर उसे बताते-सिखाते थे।
सप्ताह भर से मूसलाधार बारिश हो रही थी। उनके घर के चारों तरफ पानी ही पानी था। लाटूमणि को तैरना तो आता था, पर उसके दादाजी ने उसके घऱ से निकलने पर जैसे पाबंदी लगा रखी थी क्योंकि पानी में सांप और दूसरे जीवं-जंतुओं का डर लगा रहता है। कहीं पोते को कोई चीज काट न ले।
लाटूमणि के पिता ने केले के तनों से डोगी बना रखी थी। लाटूमणि का जी चाहता कि डोंगी में एक बार वह भी सवारी करे। बाढ़ आने के कारण हिरन, गैंडे जंगल के दूसरे जीव-जंतु जहां-तहां भटक रहे थे।
आज सवेरे-सवेरे ही कनक ने आकर लाटूमणि को बताया कि बाढ़ में एक गैंडे का बच्चा बहकर आया है। लाटूमणि ने जब से यह बात सुनी, वह बहुत बेचैन था—काश ! वह उसे एक बार जाकर देख पाता ! सोचते-सोचते एक तरीका निकल आया। चुपके से डोंगी लेकर गैंडे तक जाने का उसने मन ही मन फैसला किया।
लाटूमणि ने रसोई की तरफ देखा। मां भात पका रही थी एक झटके में वह घर के पिछवाड़े चला आया। देखा, डोंगी खूंटे से बंधी थी। खूंटे से खोलकर वह डोंगी पर सवार हो गया। फिर जोर से पकड़कर वह डोंगी पर लेट गया। हिलती-डुलती डोंगी आगे बढ़ने लगी। डोंगी चली तो लाटूमणि का दिल धड़कने लगा—कहीं वह डूब न जाये ! फिर उसने अपना मन मजबूत किया—डरने से काम नहीं चलेगा। मुसीबत में धीरज रखना चाहिए।
तभी दादाजी की कही बातें उसे बरबस याद हो आयीं। वह उत्साह से भर उठा। डोंगी पर तनकर बैठ गया और लाठी से डोंगी को खेते हुए आगे बढ़ने लगा। अभी कुछ ही आगे बढ़ा था कि देखा, कोई चीज पानी में ऊपर-नीचे हो रही है।‘‘अरे,. यह तो गैंडे का बच्चा है !’’ लाटूमणि मन ही मन सोचने लगा।
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